Wednesday, March 9, 2022

वासनापूर्ण जीवन

 


नमस्कार दोस्तों ! मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों आज हम जानेगे की वासनापूर्ण जीवन - एक झूठ का प्रचार से हमारे जीवन पर क्या असर पड़ता है। वासनापूर्ण जीवन के नुकसान क्या है।,जानने के लिए कृपा बिना स्किप करे पूरा वीडियो देखे। 

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वीडियो को अंत तक देखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

वासनापूर्ण जीवन एक झूठ का प्रचार

आधुनिक समाज तथा चिकित्सकों और वैज्ञानिकों में यह विचार गहरी जड़ें जमा चुका है कि शुक्र रक्षा या ब्रह्मचर्य का पालन करना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिये हानिकारक हैं। वीर्य रक्षा तथा ब्रह्मचर्य नासमझी और अज्ञानता है, धार्मिक अंधविश्वास है और पिछड़ेपन की बात है। वे कहते हैं कि इन पिछड़े, अघंकार युग के विचारों का आधुनिकता से कोई वास्ता नहीं।

अनेक यौन रोग विशेषज्ञों या सेक्स विशेषज्ञों ने इस विचार का दुरुपयोग अपने व्यापारिक हित साधने के लिये करना शुरू कर दिया। उन्होंने शुक्र रक्षा और ब्रह्मचर्य के बारे में इन धारणाओं को खूब प्रचारित किया है। वीर्य रक्षा या ब्रह्मचर्य से अनेक मानसिक और शारीरिक रोग होते हैं, यह विचार सारे संसार में फैला दिया गया। चिकित्सक और मनोवैज्ञानिक युवाओं को सलाह देते हैं कि कामवासना से पैदा मानसिक व शारीरिक रोगों से बचना है तो वीर्य स्खलन करो, चाहे वेश्यालय में जाओ।

वैज्ञानिक प्रमाण नहीं हैं...

कमाल की बात यह है कि वीर्यनाश की प्रशंसा करने वालों के पक्ष में एक भ वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। फिर भी वे बड़ी कुशलता व सफलता से असत्य को प्रचारित कर रहे हैं।

मीडिया भी झूठ के साथ:

एक और कमाल यह है कि मीडिया भी इस झूठ को उजागर नहीं कर रहा, जिसके कारण एक बहुत बड़ा असत्य, सत्य बनकर अनगिनत लोगों के जीवन को खोखला, दुःखी और रोग ग्रस्त बना रहा है। समाज में तेजी से बढ़ रहे व्यभिचार का एक बड़ा कारण यह झूठ भी हैं।

वेश्यागमन भी सही?

यहाँ तक कहा जाता है वेश्याओं से मिलने वाले यौन रोग उन रोगों से कम खतरनाक हैं जो कामवासना को सन्तुष्ट न करने से पैदा होते हैं। करोड़ों युवा इस सलाह को मानकर अनेक उपायों से शुक्रनाश कर रहे हैं। हमें अनेक ऐसे युवा भी मिले जो एक दिन में दो, तीन बार वीर्यपात करते हैं।

अनैतिकता का सार्वजनिक प्रचार:

कुल्लू (हिमाचल) के कुछ मित्रों से जानकारी मिली कि विश्वप्रसिद्ध कुल्लू के दशहरे में मंच सजाकर (सन् 2015) सन्तती निरोध एड्ज तथा काम क्रीड़ा की जानकारी सार्वजनिक रूप से दी गयी।

वासना का व्यापार:

वासना का व्यापार और बाजार अरबों रुपये का है। विश्व स्तर के वासना ब के व्यापारियों ने ब्रह्मचर्य तथा वीर्य रक्षा के विचारों को बदनाम करके अपने रास्ते की रुकावटों को दूर कर दिया है। अरबों रुपये के कंडोम व गर्भ निरोधक सामाग्री, दवाएं बिक रही हैं।

अनेक शोध छुपाए गए हैं।

ब्रह्मचर्य और शुक्र रक्षा के प्रभावों पर विश्व स्तर के अनेक शोध चिकित्सा विज्ञान जगत् में हो चुके हैं, पर आश्चर्य है कि कोई भी चिकित्सक उनके बारे में बात नहीं करता। शायद वे इस बारे में जानते भी नहीं एम.बी.बी.एस. तथा एम.डी. पाठ्यक्रम में इन खोजों की जानकारी न दिये जाने से यह सन्देह होता है कि संसार भर में मैडिकल पाठ्यक्रम बनाने का तंत्र शायद उन्हीं ताकतों के हाथ में है जो सच को सामने नहीं आने देना चाहते। सम्भवतः गर्भनिरोधकों का व्यापार करने वाले व्यापारियों के नियंत्रण में संसार का चिकित्सा तंत्र है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका?

विश्व के स्वास्थ्य की सुरक्षा का दम भरने वाला विश्व स्वास्थ्य संगठन क्या रहा है ? वासना के इस विश्वव्यापी षड्यंत्र में उसकी भूमिका संदेहों को जन्म देने वाली है। इसके इलावा भी और अनेक विषय ऐसे हैं जो विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका पर संदेह पैदा करते हैं। अतः इन संगठनों पर भरोसा करना कितना उचित हैं, यह गंभीर विचार का विषय है।

एड्स की शिक्षा या अनैतिकता का प्रचार:

ध्यान देने की एकबात यह भी है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन जैसी ऐजेन्सियों द्वारा पाठशालाओं में एड्स से सुरक्षा के नाम पर कामवासना के प्रचार को बढ़ावा देने पर अकूत धन खर्च किया गया। पर ब्रह्मचर्य के वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित ज्ञान को बताने, सिखाने की बात कभी नहीं की जाती। केवल गिनती के कुछ समाजसेवी और संगठन भारत में इस विचार (ब्रह्मचर्य व चरित्र रक्षा) के बारे में अपनी आवाज उठा रहे हैं जिन्हें ये काम-वासना का प्रचार करने वाले 'पिछड़े और पोंगापंथी' कह कर नकार देते हैं।

करोड़ों का जीवन बरबाद:

वासना के व्यापारियों ने केवल भारत ही नहीं सारे संसार को एक बहुत बड़े असत्य के अंधेरे में बड़ी चालाकी और निर्ममता पूर्वक धकेल दिया है। 

करोड़ो लोगों, विशेष कर युवाओं का जीवन इस असत्य के कारण अंधकारमय बन चुका है और आगे भी बन रहा है। इसीलिये इस विषय को उजागर करना, सत्य को सामने लाने का प्रयास करना आधुनिक युग की बहुत बड़ी आवश्यकता है।

मीडिया विश्वास योग्य नहीं:

विदेशी शक्तियों द्वारा भारतीय शासनतंत्र के बार-बार इस्तेमाल हो जाने के अनुभव हम अनेकों बार ले चुके हैं। मीडिया भी अज्ञानतावश तथा किन्हीं विदेशी शक्तियों के प्रभाव में होने के कारण इस सत्य पर पर्दे डालता हो सकता है।

इसलिये अपने प्रयासों से हमारे लिये यह जानना जरूरी है कि वीर्य रक्षा और ब्रह्मचर्य के पालन के बारे में आधुनिक विज्ञान और वैज्ञानिक क्या कहते हैं।

वीर्य के प्रभाव:

अनेक आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों और खोज कर्ताओं के अनुसार वीर्य नाश के कारण अनेकों शारीरिक और मानसिक रोग पैदा होते हैं। ब्रह्मचर्य का पालन करने से रोग होने के कोई वैज्ञानिक प्रमाण किसी वैज्ञानिक को आजतक नहीं मिले हैं।

स्नायुकोशों पर प्रभाव:

हमारे स्नायुकोश (Brain Cells) का निर्माण जिन तत्त्वों से होता है वे तत्त्व फास्फोरस, लेसीविनम, कोलेस्ट्रॉल आदि है। वीर्य में इनके निकलजाने पर अवसाद, तनाव, स्मरण शक्ति को नाश आदि अनेक मानसिक रोग होते हैं। वीर्य खाद से मानसिक तनाव कम होने की बात पूरी तरह से निराधार और अवैज्ञानिक है।

वीर्य रक्षा से बल व उत्साहः

प्रजनन तंत्र से सम्बंधित अन्तः सावीग्रंथियों (ग्लैण्ड्स) से निकले हुए रस या हार्मोन स्वास्थ्य रक्षा में बहुमूल्य योगदान करते हैं। वीर्य को शरीर में सुरक्षित रखने से इन हार्मोन में उपस्थित लाभकारी तत्त्वों का लाभ मिलता है।

वीर्य रक्षा का सीधा अर्थ है सैक्स हार्मोनों की रक्षा। वीर्यनाश का साफ अर्थ है ले हार्मोन, बल तथा जीवनी शक्ति का विनाश इन हार्मोनों की कमी से बुढ़ापा आने लगता है।

वीर्य संरक्षण से उत्साह, शक्ति, स्वास्थ्य, प्रसन्नता प्राप्त होती है। मानसिक और शारीरिक क्षमता बहुत बढ़ती है तथा बहुत समय तक बनी रहती है। अतः रक्त में इन हार्मोनो की मात्रा अधिक रहे, इसके लिये जरूरी है कि वीर्य रक्षा हो ।

वीर्य या शुक्र रचना व महत्त्व :

वीर्य एक क्षारीय (एल्कलाईन) तथा चिपचिपा एल्बुमिन तरल है। इसमें उत्तम प्रकार का कैल्शियम, एल्बूमिन, आयरन, विटामिन-ई, न्युक्लियो प्रोटीन, कोलेस्ट्रॉल पर्याप्त मात्रा में होते हैं।

वीर्य स्खलन में एक बार में लगभग बाईस करोड़ (22,00,0 0 ) से अधिक स्पर्मेटोजोआ निकल जाते हैं। सैक्स हार्मोन या वीर्य के शरीर से बाहर निकलने पर उपरोक्त अमूल्य तत्त्वों की कमी होना स्वाभाविक है।

अनुमान है कि 1.8 ली. रक्त से 30 मि.ली. वीर्य बनता है। अर्थात् एक बार के 10 मि.ली. वीर्य स्राव में 600 मि.ली. के बराबर रक्त हानि होती है।

चिकित्सा में लेसिथीन:

अधिक भोग-विलास करने वालों की दुर्बलता, निराशा, मानसिक अवसाद (डिप्रेशन), यकावट के इलाज के लिए चिकित्सा जगत् में लेसिथीन का बहुत प्रयोग होता है। दवा के रूप में दिया आनेवाला लेसिथीन कृत्रिम है। वीर्य में पाए जानेवाला लेसिथीन प्राकृतिक है और 'वीर्य' का महत्त्वपूर्ण घटक है। दवा के रूप लिये जाने वाले कृत्रिम लेसीथिन का दुष्प्रभाव भी संभव है।

वीर्य से बल व बुद्धिः

चिकित्सा विज्ञानी साफ कहते हैं कि वीर्य में उपस्थित तत्त्व शरीर को बलवान् बनाते हैं। मस्तिष्क और स्नायुकोशों (ब्रिन) की महत्त्वपूर्ण खुराक (न्यूट्रिशन) इसमें हैं। स्त्री शरीर के प्रजनन अंगों की भीतरी परतें वीर्य को चूस कर, स्त्रियों के शरीर को बलवान् और उर्जावान बनाती हैं। इसी प्रकार पुरुष के शरीर में सुरक्षित रहने पर यह वीर्य पुरुषों को भी तेजस्वी, बलवान, सुन्दर, स्वस्थ बनाता है।

बुद्धि व शरीर पर प्रभाव:

स्नायु तंत्र की रासायनिक संरचना और वीर्य की संरचना में अद्भूत समानता है। दोनों में उपरोक्त समृद्ध लेसीथिन, कोलेस्ट्राल तथा फास्फोरस कम्पाऊंड हैं। वीर्य बाहर निकलने पर ये तत्त्व भी निकल जाते है। स्नायु कोष व तन्तुओं ब्रिन) के निर्माण के लिये उनकी जरूरत होती है। अतः जितना वीर्य शरीर से बाहर जाता है उतना अधिक शरीर और बुद्धि दुर्बल होती है।

वीर्यनाश होते ही दुर्बलता आती है और बार-बार वीर्यनाश होने (बाहर निकलने) पर मानसिक व शारीरिक दुर्बलता बहुत बढ़ जाती है। परिणाम स्वरूप अनेक शारीरिक और मानसिक रोग सरलता से होने लगते हैं। 'सैक्सुअल न्युरेस्थीनिया' नामक (स्नायु तंत्र दुर्बलता जैसे रोग होते हैं। अनेक विशेषज्ञों के अनुसार 'वीर्यरक्षा' दिमाग के लिये सर्वोत्तम टनिक या खुराक है।

चिकित्सा विज्ञान के प्रमाण:

'डॉ, फ्रेडरिक के अनुसार वीर्य में शक्ति है, पूर्वजों का यह विश्वास बिल्कुल सही है। 'वीर्य के तत्त्वों के विश्लेषण और शरीर व बुद्धि पर होने वाले लाभदायक प्रभावों पर 'प्रो. ब्राऊन सिकवार्ड' तथा 'प्रो. स्टीनैच' ने बहुत काम किया है व उसके अनेक प्रमाण दिये हैं। 'प्रो. स्टीनेच' के अनुसार अण्डकोष नाड़ी को बांधकर, वीर्य बाहर जाने के रास्ते को रोकर वीर्य रक्षा के स्वास्थ्य वर्धक प्रभावों पर उन्होंने अध्ययन किया। प्रो. स्टीनेच अपनी खोजों के आधार पर वीर्य-रक्षा से लाभ होने का समर्थन करते हैं।

'शरीर विज्ञान, मूत्र रोग विशेषज्ञ, यौन रोग व प्रजनन अंगों के विद्वान, मनोवैज्ञानिक, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, एण्डोक्राईनोलाजिस्ट आदि अनेक चिकित्सा विद्वान ने वीर्य रक्षा के महत्त्व को स्वीकार किया है। टाल्मी, मार्शल, क्रेपेलिन आदि प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी इस पर सहमत हैं।

'गायनाकोलोजिस्ट 'हीगर' सैक्स को जरूरी मानने की बात गलत मानते है। 'एक ओर प्रसिद्ध गायानाकोजिस्ट 'रिबिंग' (Ribbing) ब्रह्मचर्य की उपयोगिता व लाभ की बहुत प्रशंसा करते हैं। अतः स्वस्थ रहने के लिए शुक्र रक्षा जरूरी है।

लेसीथीनम सुरक्षा व शुक्र वृद्धिः

100 ग्राम सूखा आँवला, 200 ग्राम 'बूरा' मिलाकर कांच के पात्र में रखें। इसके एक दो चम्मच प्रातः, सायं पानी के साथ लेने से बहुत शुक्र वृद्धि होगी। इसके अतिरिक्त अम्ल पित्त, ऐसिडिटी, गैस में बहुत लाभ होगा, बल बढ़ेगा और पेट आराम से साफ होगा। रजोनिवृत्ति (मिनोपाज) अर्थात् मासिक धर्म बन्द होने के समय के अनेक रोगों को ठीक करने में भी यह योग कमाल करता है। मासिक धर्म के महिलाओं, लड़कियों के कष्ट दूर होंगे। जीवन में की गई भूलों के बुरे परिणामों से पैदा रोगों में भारी लाभ मिलेगा। रविवार के दिन इस चूर्ण का प्रयोग न करें तो अच्छा है।

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Hello friends !
        I welcome you Gavysiddha Sunny Kumar. In your own channel Gau Gyan Ganga.

Friends, today we will know that lustful life - how does the propagation of a lie affect our lives. To know what is the loss of lustful life, please watch the full video without skipping.


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Thank you so much for watching the video till the end
Thank you !

lustful life propagating a lie

The idea has taken deep roots in modern society and among doctors and scientists that observing Shukra Raksha or celibacy is injurious to physical and mental health. Semen protection and celibacy are ignorance and ignorance, religious superstitions and backwardness. They say that the ideas of these backward, aghkar era have nothing to do with modernity.

Many sexologists or sex experts started misusing this idea for their business interests. He has widely publicized these beliefs about protection of Shukra and celibacy. The idea that many mental and physical diseases are caused by semen protection or celibacy, was spread all over the world. Physicians and psychologists advise the youth that if you want to avoid mental and physical diseases caused by sex, then ejaculate semen, even if you go to the brothel.

There is no scientific evidence...

The amazing thing is that there is no scientific evidence in favor of those who praise semen destruction. Yet they are propagating untruths with great skill and success.

The media also lied:

Another amazing thing is that even the media is not exposing this lie, due to which a huge untruth is turning into truth making the lives of countless people hollow, sad and diseased. These lies are also a major reason for the rapidly increasing adultery in the society.

Prostitution right?

It is even said that the sexual diseases caused by prostitutes are less dangerous than those which arise from not satisfying sex. Millions of youths are destroying Shukra by following this advice in many ways. We also found many such young people who ejaculate two or three times in a day.

Public Propagation of Immorality:

It was learned from some friends of Kullu (Himachal) that by decorating the stage in the Dussehra of the world famous Kullu (2015), information about child custody age and sex play was given publicly.

Lust Trade:

The business and market of lust is worth billions of rupees. The world class Lust B traders have removed the hindrances in their path by defaming the ideas of celibacy and semen protection. Condoms and contraceptive materials, medicines worth billions of rupees are being sold.

Many researches have been hidden.

Many world-class researches have been done in the medical science world on the effects of celibacy and protection of Shukra, but it is surprising that no doctor talks about them. Maybe they don't even know about MBBS. and M.D. Due to the lack of information about these discoveries in the curriculum, it is suspected that the mechanism of making medical courses all over the world is probably in the hands of those forces who do not want to let the truth come out. Probably the medical system of the world is under the control of traders who trade contraceptives.

Role of the World Health Organization?

What has been the World Health Organization's commitment to safeguarding the health of the world? His role in this worldwide conspiracy of lust is bound to give rise to suspicion. Apart from this, there are many other issues that raise doubts about the role of the World Health Organization. Therefore, whether it is appropriate to rely on these organizations is a matter of serious consideration.

AIDS education or promotion of immorality:

It is also worth noting that a lot of money has been spent by agencies like the World Health Organization on promoting the promotion of sex in the name of protection against AIDS in schools. But the scientifically proven knowledge of celibacy is never talked about to be taught, taught. Only a few social activists and organizations are raising their voice about this idea (celibacy and character protection) in India, which they reject as 'backward and pongpanthis' propagating lust.

Millions of lives wasted:

Merchants of lust have very cleverly and ruthlessly pushed not only India but the whole world into the darkness of a great untruth.

The life of crores of people, especially the youth, has become dark due to this untruth and is becoming more so. That is why exposing this topic, trying to bring out the truth is a great need of the modern era.

Media not credible:

We have had many times the experience of repeated use of Indian polity by foreign powers. Media can also cover this truth due to ignorance and being under the influence of some foreign powers.

Therefore, through our efforts, it is necessary for us to know what modern science and scientists say about semen protection and observance of celibacy.

Effects of Semen:

According to many modern medical scientists and discoverers, many physical and mental diseases arise due to the destruction of semen. No scientist has found any scientific evidence of disease due to celibacy.

Effects on Neurons:

The elements from which our brain cells are made are phosphorus, lecivinum, cholesterol etc. Due to their release in semen, there are many mental diseases like depression, stress, loss of memory power etc. The talk about reducing mental stress with semen fertilizer is completely baseless and unscientific.

Strength and enthusiasm from semen protection:

The juices or hormones released from the glands related to the reproductive system make a valuable contribution to health care. By keeping semen safe in the body, the beneficial elements present in these hormones get the benefit.

Semen protection simply means protection of sex hormones. The clear meaning of semen destruction is the destruction of hormones, strength and vitality, due to the deficiency of these hormones, old age starts.

Conservation of semen gives enthusiasm, strength, health, happiness. Mental and physical capacity increases greatly and remains for a long time. Therefore, the amount of these hormones in the blood should be high, for this it is necessary that the semen should be protected.

Semen or Venus composition and importance:

Semen is an alkaline and viscous albumin liquid. It contains good quality calcium, albumin, iron, vitamin-E, nucleoprotein, cholesterol in sufficient quantity.

More than twenty two million (22,00,0 0 ) spermatozoa are released in a semen ejaculation at a time. It is natural to have a deficiency of the above invaluable elements when the sex hormones or semen come out of the body.

It is estimated that 1.8 L. 30 ml of blood Semen is produced. That is, 10 ml of a bar. 600 ml in semen secretion equal to blood loss.

Lecithin in Medicine:

Lecithin is used a lot in the medical world for the treatment of weakness, despair, mental depression, and weakness of those who indulge in excessive enjoyment. Lecithin given as a drug is synthetic. Lecithin found in semen is natural and is an important component of 'semen'. Side effects of synthetic lecithin taken as medicine are also possible.

Strength and intelligence from semen:

Medical scientists clearly say that the elements present in semen make the body strong. It contains vital nutrients (nutrition) of the brain and the brain. The inner layers of the reproductive organs of the female body suck the semen, making the female body strong and energetic. In the same way, this semen, when kept safe in the body of a man, also makes men brilliant, strong, beautiful, healthy.

Effects on mind and body:

There is a wonderful similarity between the chemical composition of the nervous system and the composition of semen. Both contain the above mentioned rich lecithin, cholesterol and phosphorus compounds. These elements are also released when semen comes out. They are needed for the formation of nerve cells and fibers (brain). Therefore, the more semen goes out of the body, the more the body and the intellect becomes weak.

Weakness comes as soon as semen is lost, and mental and physical debility increases a lot after frequent ejaculation (exit). As a result, many physical and mental diseases start happening easily. There are diseases like 'sexual neurasthenia' (nervous system weakness. According to many experts, 'virya raksha' is the best tonic or dose for the brain.

Medical Science Evidence:

According to Dr. Frederick, there is power in semen, this belief of the ancients is absolutely correct. On the analysis of the elements of semen and its beneficial effects on the body and intellect, Prof. Brown Sikward' and 'Prof. Steinach has done a lot of work and has given many proofs of it. 'Pro. According to Steinach, he studied the health-promoting effects of semen protection by tying the testicles, preventing the passage of semen out of the testicles. Pro. Steinach supports the benefits of semen-protection based on his discoveries.

Many medical scholars like physiology, urologist, sexual diseases and reproductive organs scholars, psychologists, gynecologists, endocrinologists etc. have accepted the importance of semen protection. Famous medical scientists like Ptolemy, Marshall, Kraepelin etc. agree on this.

Gynecologist 'Heiger' Sachs considers it wrong to consider it necessary. On the one hand, the famous lyricist 'Ribbing' greatly appreciates the usefulness and benefits of celibacy. Therefore protection of Venus is necessary to stay healthy.

Lecithinum protection and sperm enhancement:

Mix 100 grams dry amla, 200 grams 'bura' and keep it in a glass vessel. Taking one or two spoons of it with water in the morning and evening will increase the sperm count. Apart from this, there will be a lot of benefit in acid bile, acidity, gas, strength will increase and stomach will be cleaned easily. This yoga also works wonders in curing many diseases at the time of menopause (menopause). The sufferings of menstruating women and girls will be removed. There will be huge benefits in diseases arising out of bad consequences of mistakes made in life. It is better not to use this powder on Sundays.

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Monday, March 7, 2022

पंचभूत क्या है?

 



नमस्कार दोस्तों ! मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों आज हम जानेगे की पंचभूत क्या है। पंचभूत का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ।,जानने के लिए कृपा बिना स्किप करे पूरा वीडियो देखे।

अगर हमारे द्वारा दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो कृपा करके इस वीडियो को LIKE करे , SUBSCRIBE करे , और BELL ICON को दबाना न भूले। ताकि हमारी आने वाली सभी वीडियो की जानकारी आप लोगो तक तुरंत मिल सके। वैधानिक चेतावनी :- अगर हमारे द्वारा दी गई किसी भी नुक्से से किसी को नुकसान होता है। उसकी जिम्मेदारी इस चैनल की नहीं होगी। कृपा अपने चिकित्सक की सलाह अवश्य ले। वीडियो को अंत तक देखने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !

पंचभूत आधुनिक जीवन शैली में हम स्थूल में इतना डूब गए हैं कि सूक्ष्म शक्तियों के महत्त्व को लगभग भुला बैठे हैं। जबकि हमारे जीवन की सफलता स्थूल से कई गुणा से अधिक सूक्ष्म शक्तियों पर निर्भर करती है। पंचभूतों के सूक्ष्म आयामों को समझते हुए उनकी साधना व शोधन से उचित लाभ उठा सकते हैं। जीवन में सफलता, यश, स्वास्थ्य व समृद्धि की प्राप्ति कर सकते हैं। पंचतत्त्वों में चेतना है ये पाँच तत्त्व अथवा पंचभूत-पृथ्वी, जल, अग्नि या तेज, वायु तथा आकाश हैं। यदि = हमें लगता हो कि यह पाँचों तत्त्व निर्जीव, निष्प्राण हैं तो इसपर पुनः विचार करें। ■ सच यह है कि इनमें चेतना, स्मृति, समझ है। ये हमारे द्वारा किये गए व्यवहार के अनुसार हमारे साथ व्यवहार करते हैं। हमने जैसा व्यवहार इनके साथ किया, उसी के अनुसार वें उसका प्रतिफल देते हैं। हमारे द्वारा इनके साथ किये गये व्यवहार के अनुसार इनके गुण, धर्म व प्रभाव में परिवर्तन होता है। हम इस बात को इस प्रकार भी कह सकते हैं कि 'हम जैसा व्यवहार पंचभूत के साथ करते हैं, उसी vec phi अनुसार इनका व्यवहार हमारे प्रति होता है।
जल तत्त्व में जीवन है पहले हमारा इन बातों पर विश्वास नहीं था। हमने जल पर अनेक प्रयोग करके देखे। आश्चर्य की बात है कि हर बार हमारे व्यवहार के अनुसार उसमें दोष पैदा हुए। एक प्रयोग में काँच के गिलासों में पानी डाल कर रखा गया। एक गिलास के पास लिख कर रखा 'मूर्ख', दूसरे के पास लिखा 'श्रद्धेय', एक गुण और के पास फूल रखे। 'मूर्ख' लिखे गिलास का पानी पीने से व्यक्ति की शक्ति आधे से भी कम हो गई। 'श्रद्धेय' लिखे गिलास के पानी से और फूल वाले गिलास का केवल एक घूंट पानी पीने से शक्ति दोगुणा से भी अधिक बढ़ गई। हम सब यह देखकर आश्चर्यचकित थे अद्भुत, अविश्वसनीय या यह सब, पर यही सच है जिससे हम अनजान हैं। सर्च इंजन पर खोज करके पढ़ें "Dr. Emoto work on Water" इन्होंने पानी पर बहुत खोज की है और सिद्ध किया है कि पानी vec 6 पास करोड़ों स्मृतियाँ है, उसमें जीवन है। पानी पर जर्सी गाय के गोबर का प्रभाव | इसके बाद हमने एक दूसरा प्रयोग किया एक गिलास के पास जर्सी गाय का सूखा गोबर रखा व एक गिलास के पास देसी गाय का गोबर रखा जर्सी गाय के गोबर वाले पानी का एक घूंट पीने से ताकत बहुत कम हो गई। किन्तु देसी गाय के गोबर वाला पानी पीते ही शरीर में बहुत थल बढ़ गया हजारों लोगों के सामने ये प्रयोग करके देखे जा चुके हैं। आप भी चाहें तो प्रयोग करके देख सकते है। इन प्रयोगों को करने के बाद हमें समझ आया कि ये पाँचों तत्त्व निर्जीव नहीं, चेतना से भरपूर हैं। हम इन के साथ जैसा व्यवहार करते हैं उसके अनुसार हमारे तन और मन पर इन तत्वों के प्रभाव होते हैं। इसलिए हमारा सुझाव है कि पाँचों तत्वों का यथासंभव सम्मान करें। पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश सभी तत्वों की संतुष्टि, स्वस्थ सुखी रहने के लिये शोधन के लिए अनेक उपाय किए जा सकते हैं। उन में से सबसे सरल व शक्तिशाली है अग्निहोत्र। इसकी विस्तृत जानकारी के लिए youtube पर homatherapy और homa farming देखें, गूगल करके विवरण पढ़ें विश्वास रखें कि इन उपायों से आपका जीवन पहले से बहुत अधिक सुखी, स्वस्थ, समृद्ध व मंगलमय होगा।
प्रमाण हेतु डा. इमोटो तथा डा. जोसेफ मेरकोला उपरोक्त विषय की प्रामाणिकता के लिए आप इंटरनेट पर तलाश कर सकते हैं। अमेरिका के एक सुप्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी 'डा. जोसफ मेरकोला' की एक साईट Mercola.com देखना उपयोगी होगा। हम 20 वर्षों से भी अधिक समय से देख रहे है। इनकी अनेक जानकारियां (सभी नहीं) बहुत काम की तथा प्रमाणित है। हमारे द्वारा दी गई सभी परिकल्पनाओं व निष्कयों के समर्थन में शोध पत्र मिलना तो अभी संभव नहीं। पर निरन्तर शोध पत्र व प्रमाण मिलते जा रहे है। यह विषय अभी परिपूर्ण नहीं, इस पर और शोध व अध्ययन की आवश्यकता है। इसके कुछ आयामों पर अभी तक शोध कार्य सम्भवतः हुआ भी नहीं है। पर और अधिक काम करने की आवश्यकता निश्चित रूप से है। हो सकता है कि हमारी स्थापनाओं, परिणामों में सुधार भी करने पड़ें। अतः इस कार्य को पूर्णता की ओर ले जाने के लिये सुपात्रों द्वारा अभी काफी प्रयास किये जाने की जरूरत है।

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एलोपैथी का मूल्यांकन


नमस्कार दोस्तों ! मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों आज हम जानेगे की क्या एलोपेथी से ही हम स्वस्थ राह सकते है,एलोपैथी का हमारे जीवन में कितना उपयोग होना चाहिए है। इस वीडियो में हम "एलोपैथी का मूल्यांकन"करेंगे। एलोपैथी का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ।,जानने के लिए कृपा बिना स्किप करे पूरा वीडियो देखे।

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'ऐलोपैथी का मूल्यांकन' सारे संसार में प्रचलित ऐलापैथी का मुल्यांकन बहुत जरूरी k_{1} कई बार है कि यह वरदान है, अनेक बार लगता है कि यह अभिशाप है। ऐलापैथी वास्तविकता समझने, उसका मूल्यांकन करने का एक प्रयास करते है क्या एल के द्वारा स्वास्थ्य संभव है? इतिहास गवाह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वाशिंगटन चिकित्सा के कारण मर गए थे। 1799 में चिकित्सा के नाम पर उ लगभग 80 औंस (शरीर का 40 प्रतिशत) रक्त निकाल दिया था। गले की स के इलाज के लिये बार-बार रक्त निकालने से उनकी मृत्यु हुई थी। वे लोग अपने राष्ट्रपति की चिकित्सा भी ठीक से नहीं कर पाए हमारी अनपढ़ दादी, नानी गले की सूजन का इलाज हजारों साल से करती आ रही हैं। आज ऐलोपैथी चिकित्सा बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। स्वयं अमेरिका के डाक्टरों कहना है कि 2,50,000 रोगी ऐलोपैथी चिकित्सा से, हर साल अमेरिका में है। इनमें दवाओं के दुष्प्रभावों से 1, 06, 000 मरते हैं। ऐसा समझा जाता है कि आंकड़े वास्तविकता से काफी कम हैं, क्योंकि अनेक मामले छुपा दबा दिये जाते है।

(डा. बार्बरा स्वरफील्ड, डा. जोसेफ मेरकोला)
अमेरिका में यह हालत है तो अफ्रीका एवं एशियाई देशों में तो करोड़ों लोग इस चिकित्सा से भर रहे होंगे यह भी किसी से छुपा नहीं कि महंगी एलोपैथी चिकित्सा के कारण हर साल लाखों परिवार निर्धनता की श्रेणी में आ जाते हैं। आधुनिक चिकित्सा में नैतिकता की सब सीमाएं टूट रही है। मानव अंगों का व्यापार, बिना कारण अपरेशन करना, अकारण आई.सी.यू. में भर्ती करना, मरे हुए व्यक्ति को आई.सी.यू. में रखकर पैसा कमाने तक के मामले सामने आए हैं। लोगों को डराकर अनावश्यक दवाईयाँ देना रोज की बात है। एलोपैथिक दवाओं की विषाक्तता का सिद्धान्त पीछे बताया जा चुका है। वैसे भी इस चिकित्सा के कारण तीन लाख करोड़ रुपए (औपचारिक सूचना) से अधि तक हर साल भारत का लूट लिया जाता है। यह राशि हर साल लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह भी हो सकता है कि यह राशि छ लाख करोड़ से भी कहीं अधिक हो। ऐसे में अपनी स्वदेशी निरापद् चिकित्सा पद्धतियों पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो चुका है। हमारी चिकित्सा पद्धतियों में दुष्प्रभाव की संभावना नगण्य है। ये चिकित्सा पद्धतियाँ सरलता से सीखी सिखाई जा सकती हैं। ऐलोपैथी को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, नकारने की आवश्यकता भी नहीं है। मानव के लिए जो हितकारी है, उसे ग्रहण करना चाहिए। फिर चाहे वह स्वदेशी हो या विदेशी हो। वेद मंत्र है: ।। आनो भद्राः क्रतवो अर्थात् यन्तु विश्वतः ।।

जो कल्याणकारी है उसे सब दिशाओं से आने दो। ऐलेपैथी जांच (टेस्ट), शरीर विज्ञान, शल्य चिकित्सा, विकसित यंत्रों आदि का उपयोग सही है। वास्तव में चिकित्सा जगत में प्रयोग किए जाने वाले यंत्र इत्यादि एलोपैथी नहीं विज्ञान है। समस्या केवल एलोपैथिक जगत की अनैतिकता और निश्चित दुष्प्रभाव करने वाली दवाओं के साथ है। अतः जो श्रेष्ठ है, कल्याणकारी है वह स्वीकार्य है और जो अनुचित है, अकल्याणकारी है, उसे नकारना, त्यागना, बदलना होगा।

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क्लोरीन का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है?

 


नमस्कार दोस्तों ! मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों आज हम जानेगे की क्लोरीन का हमारे शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। और क्या जल को शोधन करने के और कौन- कौन से उपाए है। जानने के लिए कृपा बिना स्किप करे पूरा वीडियो देखे।


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क्लोरीनेशन के कितने खतरे यद्यपि विश्व के लगभग सभी देशों में जलशोधन में क्लोरीन के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। पर भारत में बिना सोचे समझे इसका व्यापक प्रयोग किया। जा रहा है। अभी तक पानी को कीटाणुमुक्त करने के लिए वाटर प्यूरीफायर्स में क्लोरीन नामक रसायन को एक किफायती, प्रभावी (कानूनी मान्यता प्राप्त) कीटाणु नाशक के रूप में प्रयोग में लाया जाता है। क्लोरीन और इसके उप-उत्पाद घातक हैं। इन्हें क्लोरीनेटेड हाइड्रोकार्बन्स या ट्राईहेलोमिथेन, हेलोएसिएरिक ऐसिड के नाम से भी जाना जाता है। स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार इनमें से कई म्यूटेजेनिक या कार्सिनोजेनिक हैं। कुछ वाटर प्यूरीफायर टीसीसीए जनरेटेड क्लोरीन का इस्तेमाल करते हैं। एन्वायरमेंटल प्रोटेक्शन एजेन्सी (ईपीए) द्वारा इसका दीर्घकालिक प्रयोग मान्य नहीं है। इस रसायन का प्रयोग अधिकतर स्वीमिंग पूल्स के पानी को कीटाणुमुक्त करने के लिए किया जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में वर्ष 2010 तक जल शुद्धिकरण में जहरीली गैस क्लोरीन का प्रयोग बंद कर दिया जाना था। अधिकांश विकसित देशों में यह अनेक वर्ष पहले बंद कर दिया गया था। क्लोरीन पानी में मिलाने से माइक्रो बैक्टीरिया एवं कैलीफाम बैक्टीरिया तुरंत मर जाते हैं। दूसरी ओर क्लोरीन के जल से गालब्लेडर कैंसर जैसी बीमारियां हो रही हैं। यमुना जल में आमोनियम कंटेंट क्लोरीन से मिलकर कई तरह के क्लोराइड, सल्फेट एवं बाई प्रोडक्ट पैदा कर रहे हैं। वैसे भी टरबिटी, सस्पेंडेंड मैटर पर क्लोरिन प्रभावी नहीं है।
कलोरीनेटेक जल के खतरों के बारे में से इस विषय के विशेषज्ञ क्या कहते हैं।- जरा यह जान लें :

जो लोग क्लोरीनेटेड पानी नहीं पीते, उनकी तुलना में क्लोरीनेटिड पानी पीने वालों में कैंसर होने का जोखिम 93 प्रतिशत अधिक होता है।
-डॉ. जे.एम. प्राई

आर्टीरियोस्क्लेरोसिस और उसके परिणामस्वरूप हार्ट अटैक और स्ट्रोक्स का कारण ना कोई और नहीं वह क्लोरीन ही है जो हमारे पेयजल में उपस्थित है।

-जेनेट रेलोफ साइंस न्यूज वोल्यूम 130.
क्लोरीनयुक्त पानी आपकी सेहत को खोखला कर सकता है। -डॉ. एन. डब्ल्यू. बाकर, डीसी

एक अमेरीकी विशेषज्ञ के अनुसार क्लोरीन आधुनिक युग का सबसे बड़ा अपाहिज बनाने वाला, अनेक हत्याओं का कारण है। यह एक बीमारी से बचाता है तो दूसरी ॥ अनेक पैदा करता है। सन् 1904 में जब से हमने (अमेरीका में) पेयजल का क्लोरीकरण किया तभी से दिल की बीमारियाँ, कैंसर और असमय बुढ़ापे जैसी शुरू बीमारियां पनपने लगी है।

भारत में सबसे ज्यादा लोग जलजलित बीमारियों के शिकार होते हैं। जलजनित रोगों का मुख्य कारण उसमें पाए जाने वाले कोलोफार्म बैक्टीरिया होते हैं। इनको नष्ट करने के लिए पानी में क्लोरीन मिलाया जाता है। अन्त में उपभोक्ता तक पहुंचे पानी में क्लोरीन का ओटी टेस्ट होता है। उसके पाजिटिव मिलने पर ही माना जाता है कि सही मात्रा में क्लोरीन मिली है। टेल तक क्लोरीनयुक्त पानी पहुंचाने के लिए जल संस्थानों में जगह-जगह क्लोरीन मिलाने वाले डोजर लगे हैं। सबसे पहले निर्धारित मात्रा में क्लोरीन जल में मिलाई जाती है। उसके बाद हर मुहल्ले में जलापूर्ति करने वाले पम्पों में भी क्लोरीन मिलाकर आगे भेजा जाता है। पाइपलाइन पुरानी होने के कारण जगह जगह उसमें गंदगी मिलने की आशंका के कारण निर्धारित मात्रा से कई गुणा अधिक क्लोरीन पानी में मिलाई जा रही है।

 • शोध कर्ता वैज्ञानिकों के अनुसार क्लोरीन युक्त पानी में बहुत देर तैरने या नहाने से मूत्राशय के कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है।

• स्पेन के वैज्ञानिकों के एक दल ने पाया है कि कैंसर का कारण रसायन ट्राई हैलोमियेन (टीएचएम) है जो त्वचा के माध्यम से शरीर के भीतर प्रवेश करता है। टीएचएम पानी में क्लोरीन मिलाने पर बनता है।

• डेली मेल की रिपोर्ट अनुसार क्लोरीन युक्त पानी में जो लोग बहुत ज्यादा देर तक तैरते हैं अथवा नहाते हैं वे वास्तव में बहुत ज्यादा टीएचएम लेते हैं। इससे उनमें कैंसर होने की संभावना बहुत बढ़ जाती है। इस अनुसंधान के लिए अनुसं मनकर्ताओं ने 1270 लोगों पर अध्ययन किया।

• स्पेन के कैस्टेला माशा में स्थित सेंटर फार रिसर्च इन एनवायरमेंट एपीडेमिओलाजी' के डॉक्टर जीमा कैस्टाओ-विन्यात्स का कहना है कि ज्यादा पैसे वाले लोग अथवा शिक्षित लोग सोचते हैं कि वे बोतल बंद पानी पी कर पानी से होने वाली से बच जाते हैं, लेकिन ये नहीं जानते कि क्लोरीन युक्त पानी में
लंबे वक्त तक तैरने और बहाने वालों से भी अधिक मात्रा में टीएचएम अपने भीतर लेते हैं। इसकी अधिक मात्रा से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उल्टियां हो सकती हैं, फेफड़े खराब हो सकते हैं, पेट संबंधी विकार भी हो सकते हैं।

• पानी में कई बार अधिक मात्रा में क्लोरीन मिलाने से लोग उल्टी, दस्त की गिरफ्त में आ जाते हैं। फेफड़ों को खराब करने में पानी में क्लोरीन सर्वाधिक जिम्मेदार है। क्लोरीनीत जल पीने वालों में भोजन नली, मलाशय, सीने और गले के कैंसर की घटनाएं ज्यादा पाई गई हैं।

• नैशनल कैंसर इंस्टीट्यूट द्वारा प्रकाशित जरनल के अनुसार लम्बे समय तक क्लोरीन युक्त जल पीने से ब्लैडर कैंसर के विकसित होने का जोखिम 80 प्रतिशत तक बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार समस्या क्लोरीन से रसायनों का वह समूह है जिनसे मूत्राशय का कैंसर हो सकता है।

• क्लोरीनीत जल के उप-उत्पादों से मूत्राशय का कैंसर, उदर, फेफड़ों, मलाशय, दिल की बीमारियां, धमनियां का सख्त होना, एनीमिया, उच्च रक्तचाप और एलर्जी आदि बीमारियां जन्म ले सकती हैं।

• यह प्रमाण भी मिले हैं कि क्लोरीन हमारे शरीर के प्रोटीन को नष्ट कर सकती है, जिससे त्वचा और बालों पर दुष्प्रभाव पड़ते हैं। पानी में क्लोरीन होने से क्लोरोमाईन्स (क्लोरीन के उपचार के बाद पैदा होने वाले कीटाणु) बनते हैं, जिससे स्वाद और गंध के विकारों जैसी समस्याएं जन्म ले सकती है।

• क्लोरीन गैस की अधिकता और निरंतरता सीधे फेफड़ों को आघात पहुंचाती है, समूचे श्वसन तंत्र को जख्मी कर देती है। इसके कहर से आंखे भी अछूती नहीं रहतीं। क्लोरीन से 'जल शोधन' धीमा जहर लेने की तरह है।

• कोटा के एक जलापूर्ति करने वाले संयंत्र से प्रति 10 लाख लीटर पानी में 2 किलो से लेकर 4 किलो तक क्लोरीन गैस डाली जाती थी। वह भी अंदाज से इस प्रक्रिया में प्लांट के चैंबर्स पर लगे लोहे के गेट और चदरें तक गल गई। यहां तक कि क्लोरीन के असर से एक स्वच्छ जलाशय की छत तक खत्म हो गई। इस मामले में कोटा मेडिकल कॉलेज के चेस्ट एवं टीबी रोग के विभागाध्यक्ष डा. बीएस वर्मा का कहना है, "फेफड़ों को खराब करने में पानी के साथ क्लोरीन की अधिक मात्रा सर्वाधिक जिम्मेदार है।"

क्लोरीन की मात्रा को जांचने के लिए क्लोरोस्कोप का प्रयोग होता है इससे पानी में क्लोरीन की मात्रा कितनी कम और कितनी अधिक है, इसका पता आसानी से चल जाता है।

अतः क्लोरीन से जलशोधन आत्मघाती है। ओजोनाईजेशन, एन्जाईम, अग्निहोत्र, सहजन के बीज इत्यादि अनेक विषरहित जलशोधन के उपाय हो सकते हैं। (आशिंक सामग्री साभार उधृत)


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बुरी यादों से छुटकारा या मनुष्यता से मुक्ति

 


 नमस्कार दोस्तों !

मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। हम जानेंगे की हम सभी को बुरी यादो से छुटकारा कैसे मिल सकता है। इस वीडियो में हमारे स्वास्थ सम्बंधित बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है। इसलिए इस वीडियो को बिना स्किप किये अंत तक जरूर देखे।

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बुरी यादों से छुटकारा या मनुष्यता से मुक्ति 

भारतीयों को बुरी यादों से छुटकारा दिलाने के लिये विदेशी दवा कम्पनियाँ काफी उत्साहित नजर आ रही हैं। पिछले वर्षों में कई बार इस आशय के समाचार छपे है कि बुरी यादों से छुटकारा दिलाने की दवा विकसित की गई है। जबकि सच्चाई कुछ और ही है। यादों को संग्रहित करने वाले न्यूरो ट्रान्समीटर में संवेदनाओं को समाप्त कर देने वाली यह दवा पहले से बाजार में उपलब्ध है तथा उच्चरक्तचाप के करोड़ों रोगियों को खिलाई जा चुकी है।

'बीवब्लाकर प्रोपेनेलोल' नामक इस साल्ट के प्रभाव से मनुष्य की स्मृतियों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो जाती है। दया, ममता, करुणा, प्रेम आदि के भाव समाप्त होने से वह हिंसक पशु बन जाता है। अतः इस दवा को सैनिकों को खिलाने का सुझाव दिया गया जिससे वे शत्रु सैनिकों को क्रूरता से मार सकें। मनुष्यों को पशु बनाने वाली इस दवा पर रोक लगाने के स्थान पर इसे और अधिक प्रचारित करने के विज्ञापन कुछ वर्ष पूर्व छपे थे।

इसे प्रचलित करने वालों के विरुद्ध अरबों रुपये की क्षतिपूर्ति का दावा करने की बजाय इसके और अधिक प्रयोग की सिफारिश करना हमारे दिशा दर्शकों के दिमागी दिवालियेपन का प्रमाण है। करोड़ों रुपये के खर्च, 10 साल तक शोध करने के "आर एन डी' (रिसर्च एण्ड डिवेलपमेंट) के दावे भी एक नाटक के इलावा कुछ नहीं लगते। यदि इतने वर्ष खोज और बड़े खर्च के बाद भी दवाओं के अज्ञात दुष्प्रभाव बाद में पता चलते हैं तो फिर शोध के दावे बेमतलब हो जाते हैं।

यह भी विचारणीय है कि कहीं आयुर्वेद की दवाओं को प्रतियोगिता में आने से रोकने के लिये 'आरएनडी को एक शस्त्र की तरह प्रयोग तो नहीं किया जा रहा ? ऐलोपैकी दर्जनों दवाएं ऐसी है जिन्हें प्रचलित होने तथा करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य खराब करने के बाद वापिस लेना पड़ा, बन्द करना पड़ा है। ऐसे में आरऐनडी के दावों का अर्थ क्या रह जाता है? युनानी, आयुर्वेद, होम्योपैथी की कोई दवा आज तक बाजार में बंद करने की सिफारिश नहीं करनी पड़ी। उनपर शोध के अरबों रुपये खर्चने की जरूरत नहीं पड़ी। जिन एलोपैथिक दवाओं पर इतना धन और समय खर्च किया जाता है, उन्हीं के इतने खतरनाक प्रभावों के अनगिनत मामले क्यों होते हैं?

सैकड़ों एण्टीबायोटिक, ऐनलजैसिक, एण्टीपायरेटिक, एण्टीडिप्रेसेन्ट, एचआरटी दवाएं हैं जिनके बुरे प्रभाव दुनिया के अरबों रोगी भोग रह हैं। फिर भी इन दवा निर्माताओं और दवाओं के विरुद्ध कार्यवाही नहीं होती या होती भी है तो अपवाद स्वरूप विकसित देशों में होती है।

निष्कर्षः आरएनडी का वह अर्थ नहीं जो समझा और समझाया जाता है। इन दवाओं के निरापद होने की गारण्टी यह शोध नहीं है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों को दबाने के लिये तथा अपनी दवाओं का मूल्य अत्यधिक बढ़ाने के लिये भी इस आरएनडी का भूत खड़ा किया जाता है। स्मरणीय है कि एलोपैथिक दवाओं के पर सुनिश्चित होते है। अतः यथा संभव अन्य पद्धतियों की दवा लेना उचित है। दुष्प्रभाव आमतौर अनेक वैश्विक संगठनों के सहयोग से दवा निर्माता कम्पनियों विश्व के दवा बाजार पर कब्जा किये हुए हैं। नेता, अधिकारी और सरकारों को इस्तेमाल करने, खरीदने में ये कम्पनियां कुशल हैं। अनैतिक दाँव-पेंच से आयुर्वेद आदि चिकित्सा पद्धदितयों को पीछे धकेलकर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।

आपको रोगी बनाने के जो तरिके अपनाये जा रहे है उनमें से प्रमुख का वर्णन हमनें किया है। इस सूची में और बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है। हम सबको स्वस्थ रहना है तो इन कारणों को जानकर समाधान करने होगें।

देशी गाय के गोबर का कमाल

कई घंटे से प्रसव नहीं हो रहा था देशी गाय के गोबर का रस निकालकर पुत्रि को पिलाय तो चमत्कारिक लाभ हुआ और कुछ ही मिनटों में प्रसव हो गया। -शिवकुमार राजपाल, खंडवा, मध्यप्रदेश गर्भ में बालक के गले में बॉल फंस गई थी और पूरी रात से प्रसव नहीं हो रहा था। मैंने एक चम्सव गोदर रस को गंगाजल में पिलाया तो 20 मिनट में प्रसूति हो गई। -अशोकचंदनमल उल्हासनगर, महाराष्ट्र

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मासिक धर्म तथा सर्वाईकल


 नमस्कार दोस्तों !

मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों इस वीडियो में हम महिलाओ के मासिक धर्म तथा सर्वाइकल का घरेलु उपाय के बारे में बताएँगे। इस वीडियो में हमारे स्वास्थ सम्बंधित बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है। इसलिए इस वीडियो को बिना स्किप किये अंत तक जरूर देखे।

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मासिक धर्म तथा सर्वाईकल

महिलाओं की मासिक धर्म की अनेक समस्याओं का समाधान राई से हो सकता है। मासिक धर्म के समय होने वाले दर्द, अधिक रक्त स्त्राव, सफेद पानी आवा आदि समस्याओं का समाधान राई से संभव है।

राई को पाउडर बनाकर एक काँच के जार में भरकर रख लें। हर महीने मासिक धर्म के शुरू होने से पाँच दिन पहले शुरू करके छः दिन तक खाने के बीच में एक जम्मच पाउडर रोज एक बार लें। हर महीने इसी प्रकार लेते रहें। इस आसान उपाय से मासिक धर्म के अनेक कष्टों को दूर किया जा सकता है।

इसी उपाय से आप सर्वाईकल स्पाण्डेलाईटिस का ईलाज भी कर सकते हैं। तीनों समय एक-एक चम्मच राई का चूर्ण भोजन के साथ लें तो चार-पाँच दिन में आप ठीक हो सकते हैं। ध्यान यह रखें कि राई का प्रयोग चार-पाँच दिन से अधिक न किया जाय पर अल्सर या संग्रहणी के रोगी को राई न दें।

हमारी खोज है कि सर्वाईकल स्पाण्डेलाईटिस का मूल कारण गर्दन में रीढ़ की हड्डी में नहीं, अमाशय में है। जब अमाशय में विष पदार्थ इकट्ठे हो जाते हैं तो उनके कारण गर्दन में तनाव, खिचाव तथा विकृतियाँ होने लगती हैं। राई खाने से अमाशय के विष निकल जाते हैं और गर्दन का कष्ट दूर हो जाता है। यह होगी कि राई जेनेटिकली मोडिफाईड न हो। यह भी ध्यान रखना होगा की राई जेनेटिकली मोडिफाइड न हो।   

गर्मियों के लिये चाय या क्वाथ

बला, खस, बेल गिरी, जीरा, धनिया, पुदीना, नागरमोथा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी, जयमांसी, आज्ञा घास, या लेमन ग्रास, गुलाब व गेंदा पुष्प, सहजन पत्र सभी 50-50 ग्राम मिलाकर पीस लें तथा काँच के जार में रखें पकाकर पियें, दूध न डालें। यदि दूध डालना हो तो पुदीना न डालें। सर्दियों के मौसम में लॉग दालचीनी और मोटी इलायची भी 20-20 ग्राम डालें, खस ना डालें।

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Sunday, March 6, 2022

सकारात्मक सोच की शक्ति।



 नमस्कार दोस्तों !

मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों इस वीडियो में हम जानेंगे की भारत विश्व विजेता कैसे बनेगा और इसके लिए हम सभी को क्या करना बढ़ेगा। इसलिए इस वीडियो को बिना स्किप किये अंत तक जरूर देखे।

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विश्व विजेता भारत ऐसे बनेगा

अमेरीकी राजदूत 'हू-शिह' लिखते हैं :

"भारत में एक भी सैनिक अपनी सीमाओं से बाहर भेजे बिना साँस्कृतिक रूप से 2000 वर्ष तक चीन पर अपना प्रभुत्व जमाए रखा।" यह पढ़कर कोई भी देशभक्त भारतीय रोमांच और गौरव का अनुभव करेगा, उत्साहित होगा। यह गौरव, उत्साह व रोमांच हमारे स्वास्थ्य को उत्तम बनाने में बहुत बड़ा योगदान करता है। इसके विपरीत हीनता, निराशा हमें बीमार बनाती है। इस बात को हम भारतीय नहीं समझ रहें। जबकि भारत विरोधी ताकतें बहुत अच्छी तरह हमारे विरुद्ध 'हीनता बोध' बढ़ाने की तकनीक का प्रयोग कर रही हैं। गत् सवा दो-ढाई सौ साल से यह प्रयास चल रहा है। आश्चर्य तो यह है कि 1947 के बाद भारतीयों में हीनता बोध जगाने के प्रयास पहले से भी अधिक प्रभावी ढंग से चलते रहे।

हम भारतीयों को हीन बताने वाले झूठे इतिहास का निर्माण, हमारी सभ्यता-संस्कृति, अतीत को हीन बताने वाले समाचार, चलचित्र, सीरियल, साहित्य बहुत बड़े स्तर पर बनाने का काम निरन्तर चल रहा है। इन घातक प्रयासों का परिणाम है कि संसार में केवल भारत में ऐसे लोग मिलते हैं जो बड़ी आसानी से भारत की सभ्यता, संस्कृति, महापुरुषों की कटु आलोचना करते हैं, अपने देश को बुरा बोलते हैं। विश्व के किसी भी देश में ऐसे लोग नहीं मिलेंगे। किसी विद्वान ने कहा है

If you want to distroy a nation, distroy its history, the nation will be
distroyed itself.


अर्थात् यदि तुम किसी देश को नष्ट करना चाहते हो तो उसका अतीत (इतिहास) नष्ट कर दो। वह राष्ट्र स्वयं नष्ट हो जाएगा। भारत के साथ यही किया गया है। सन् 1947 से पहले यूरोपीय हमारे इतिहास को बिगाड़ते रहे और उनके बाद भारत में बैठे उनके एजेन्ट, वामपंथी व क्रूरोड़ी ताकतें, जिहादी यह काम करते रहे। तभी तो भारत को कलंकित करनेवालों को नोबल व बुकर पुरस्कार दिए गए। यदि सबको भारतभक्त बनाना है तो अपने गौरवपूर्ण इतिहास को जानना और प्रचारित करना जरूरी है। बिपुल साहित्य, पुस्तकें इस पर उपलब्ध है।
इस साहित्य से भारत की सोई ऊर्जा जागेगी, हम उत्साहित, स्वस्थ्य होंगे और यह राष्ट्र भी स्वस्थ्य व सबल होगा।

यदि भारत को दुभल बनाने में विकृत इतिहास घातक सिद्ध हो सकता है तो भारत को सबल तथा तेजस्वी बनाने में गोरवशाली अतीत का समरण निश्चित रूप से संजिवनिय सिद्ध होगा। उस इतिहास को सामने लाना जरूरी हैं। भारत के अतुलनीय अतीत पर विश्व के अनेक विद्वानों ने द्रजनो पुस्तके लिखी हैं। उन पुस्तको को प्राप्त करके प्रचारित करना भारत के उज्ज्वल भविष्य के लिए आवश्यक हैं।

प्रसन्नता का कारक माने जाने वाले सोरोटोनिन, आक्सीटोसिन, एण्डोर्फिन तथा

डोपामाईन का साव बढ़ाने के उपायः आसन, हंसना, संगीत, व्यायाम, ध्यान,

प्राणायाम, सेवा, दान, कृतज्ञता, सात्विक आहार तथा संयम हैं।

"स्वदेशी गाय के घी से पाँव के तलवों में मालिश करें, नाक व नाभि में लगाएं। सर दर्द, माइगेन, ठीक होंगे, स्मरण शक्ति बढ़ेगी, आँखे सुन्दर बनेंगी, पाचन के अनेक रोगों में बहुत लाभ मिलेगा, मन प्रसन्न रहेगा।

हमारे सुख-दुःख का वास्तविक कारण हम ही हैं

अच्छी या बुरी सोच का हमारे शरीर, मन और हमारे आसपास के वातावरण पर बहुत गहरा प्रभाव होता है। वास्तविकता तो यह है कि हमारे जीवन में जो कुछ भी घटित होता है उसमें नजर आने वाले स्थूल कारकों की भूमिका 20 प्रतिशत से भी कम रहती है। दिखाई न देने वाले सूक्ष्म जगत का प्रभाव 80 प्रतिशत से अधिक हमारे जीवन पर होता है। अतः हमें अपने विचारों के प्रति सावधानी जरूरी है। हमारी सोच के अनुसार की हमारा व्यक्तित्व बनता है। हमारे शरीर की अन्तः खादी ग्रंथियों के साथ सोच से संचालित प्रभावित होते हैं। हम जैसा सोचते हैं। वैसे ही हार्मोन बनने लगते हैं। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि हमारे विचारों के अनुरूप अन्तरिक्ष की वैसी ही शक्तियां हमारी ओर आकर्षित होने लगती हैं।

अतः हमें जैसा बनना है, जो पाना है, उसके अनुसार ही अपनी विचार प्रक्रिया को बनाना होगा। उसी के अनुसार देखना, सुनना और पढ़ना होगा। क्योंकि हम जो देखते हैं, हम जो सुनते हैं, हम जो पढ़ते हैं वहीं सोचते हैं। हम वही सोचते चले जाते हैं और हम वही बन जाते हैं। जीवन में सफलता के लिए इस रहस्य को ठीक से जानना और समझना जरूरी है। यह एक ठोस तथ्य है कि...
"हम वही बनते हैं जो हम सोचते हैं, वही सोचते हैं जो हम देखते, सुनते और पढ़ते हैं।"

'द सीक्रेट' नाम की पुस्तक और मूवी में भी ऐसा ही बताया गया है कि हम इच्छा शक्ति से कुछ भी कर सकते हैं, कुछ भी प्राप्त कर सकते हैं और कुछ भी बन सकते हैं। पर उसमें एक रहस्य नहीं बताया गया। हमारी इच्छा शक्ति का सबसे बड़ा स्रोत प्रजनन शक्ति है। हम अपनी प्रजनन शक्ति को जितना बलवान बनाते हैं, जितनी अधिक उस ऊर्जा की रक्षा करते हैं, उतना ही हम अपनी इच्छा शक्ति को बलवान बना कर सफलता प्राप्त कर सकते हैं। इसीलिए भारत में संयम व ब्रह्मचर्य का बहुत महत्त्व बताया गया है और उसके लिए अनेक उपाय बताए गए हैं।

सकारात्मक ऊर्जा के लिए

ओम् का उच्चारण रोज 7 मिनट से अधिक समय तक करने से सभी रोगों में निश्चित रूप से लाभ होता है। स्मरण शक्ति भी तेजी से बढ़ती है। अतः प्रयास करें कि परिवार के सभी लोग प्रातः सायं 7 मिनट से अधिक समय तक ओम् का उच्चारण करें।

घर में मोरपंख आदर पूर्वक रखने से सकारात्मक ऊर्जा पैदा होती है, सभी रोगों में लाभ होता है। मोरपंख से झाड़ा देने से तुरन्त शारीरिक एवं मानसिक शक्ति बढ़ जाती है, शरीर के दर्दों में आराम मिलता है। आप चाहें तो दिन में दो-चार बार मोरपंख से स्वयंम को और परिवार के लोगों को झाड़ा देते रहें। झाड़ा देने का अर्थ है मोरपंख को दक्षिणावर्त सर पर घुमाना और सर से पांव की ओर स्पर्श करते हुए दो-चार बार ले जाना।

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Gau Gyan Ganga

वासनापूर्ण जीवन

  नमस्कार दोस्तों ! मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। दोस्तों आज हम जानेगे की वासन...