Monday, March 7, 2022

बुरी यादों से छुटकारा या मनुष्यता से मुक्ति

 


 नमस्कार दोस्तों !

मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे। हम जानेंगे की हम सभी को बुरी यादो से छुटकारा कैसे मिल सकता है। इस वीडियो में हमारे स्वास्थ सम्बंधित बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी है। इसलिए इस वीडियो को बिना स्किप किये अंत तक जरूर देखे।

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बुरी यादों से छुटकारा या मनुष्यता से मुक्ति 

भारतीयों को बुरी यादों से छुटकारा दिलाने के लिये विदेशी दवा कम्पनियाँ काफी उत्साहित नजर आ रही हैं। पिछले वर्षों में कई बार इस आशय के समाचार छपे है कि बुरी यादों से छुटकारा दिलाने की दवा विकसित की गई है। जबकि सच्चाई कुछ और ही है। यादों को संग्रहित करने वाले न्यूरो ट्रान्समीटर में संवेदनाओं को समाप्त कर देने वाली यह दवा पहले से बाजार में उपलब्ध है तथा उच्चरक्तचाप के करोड़ों रोगियों को खिलाई जा चुकी है।

'बीवब्लाकर प्रोपेनेलोल' नामक इस साल्ट के प्रभाव से मनुष्य की स्मृतियों के साथ-साथ मानवीय संवेदनाएं समाप्त हो जाती है। दया, ममता, करुणा, प्रेम आदि के भाव समाप्त होने से वह हिंसक पशु बन जाता है। अतः इस दवा को सैनिकों को खिलाने का सुझाव दिया गया जिससे वे शत्रु सैनिकों को क्रूरता से मार सकें। मनुष्यों को पशु बनाने वाली इस दवा पर रोक लगाने के स्थान पर इसे और अधिक प्रचारित करने के विज्ञापन कुछ वर्ष पूर्व छपे थे।

इसे प्रचलित करने वालों के विरुद्ध अरबों रुपये की क्षतिपूर्ति का दावा करने की बजाय इसके और अधिक प्रयोग की सिफारिश करना हमारे दिशा दर्शकों के दिमागी दिवालियेपन का प्रमाण है। करोड़ों रुपये के खर्च, 10 साल तक शोध करने के "आर एन डी' (रिसर्च एण्ड डिवेलपमेंट) के दावे भी एक नाटक के इलावा कुछ नहीं लगते। यदि इतने वर्ष खोज और बड़े खर्च के बाद भी दवाओं के अज्ञात दुष्प्रभाव बाद में पता चलते हैं तो फिर शोध के दावे बेमतलब हो जाते हैं।

यह भी विचारणीय है कि कहीं आयुर्वेद की दवाओं को प्रतियोगिता में आने से रोकने के लिये 'आरएनडी को एक शस्त्र की तरह प्रयोग तो नहीं किया जा रहा ? ऐलोपैकी दर्जनों दवाएं ऐसी है जिन्हें प्रचलित होने तथा करोड़ों लोगों का स्वास्थ्य खराब करने के बाद वापिस लेना पड़ा, बन्द करना पड़ा है। ऐसे में आरऐनडी के दावों का अर्थ क्या रह जाता है? युनानी, आयुर्वेद, होम्योपैथी की कोई दवा आज तक बाजार में बंद करने की सिफारिश नहीं करनी पड़ी। उनपर शोध के अरबों रुपये खर्चने की जरूरत नहीं पड़ी। जिन एलोपैथिक दवाओं पर इतना धन और समय खर्च किया जाता है, उन्हीं के इतने खतरनाक प्रभावों के अनगिनत मामले क्यों होते हैं?

सैकड़ों एण्टीबायोटिक, ऐनलजैसिक, एण्टीपायरेटिक, एण्टीडिप्रेसेन्ट, एचआरटी दवाएं हैं जिनके बुरे प्रभाव दुनिया के अरबों रोगी भोग रह हैं। फिर भी इन दवा निर्माताओं और दवाओं के विरुद्ध कार्यवाही नहीं होती या होती भी है तो अपवाद स्वरूप विकसित देशों में होती है।

निष्कर्षः आरएनडी का वह अर्थ नहीं जो समझा और समझाया जाता है। इन दवाओं के निरापद होने की गारण्टी यह शोध नहीं है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों को दबाने के लिये तथा अपनी दवाओं का मूल्य अत्यधिक बढ़ाने के लिये भी इस आरएनडी का भूत खड़ा किया जाता है। स्मरणीय है कि एलोपैथिक दवाओं के पर सुनिश्चित होते है। अतः यथा संभव अन्य पद्धतियों की दवा लेना उचित है। दुष्प्रभाव आमतौर अनेक वैश्विक संगठनों के सहयोग से दवा निर्माता कम्पनियों विश्व के दवा बाजार पर कब्जा किये हुए हैं। नेता, अधिकारी और सरकारों को इस्तेमाल करने, खरीदने में ये कम्पनियां कुशल हैं। अनैतिक दाँव-पेंच से आयुर्वेद आदि चिकित्सा पद्धदितयों को पीछे धकेलकर अपना वर्चस्व बनाए रखती हैं।

आपको रोगी बनाने के जो तरिके अपनाये जा रहे है उनमें से प्रमुख का वर्णन हमनें किया है। इस सूची में और बहुत कुछ जोड़ा जा सकता है। हम सबको स्वस्थ रहना है तो इन कारणों को जानकर समाधान करने होगें।

देशी गाय के गोबर का कमाल

कई घंटे से प्रसव नहीं हो रहा था देशी गाय के गोबर का रस निकालकर पुत्रि को पिलाय तो चमत्कारिक लाभ हुआ और कुछ ही मिनटों में प्रसव हो गया। -शिवकुमार राजपाल, खंडवा, मध्यप्रदेश गर्भ में बालक के गले में बॉल फंस गई थी और पूरी रात से प्रसव नहीं हो रहा था। मैंने एक चम्सव गोदर रस को गंगाजल में पिलाया तो 20 मिनट में प्रसूति हो गई। -अशोकचंदनमल उल्हासनगर, महाराष्ट्र

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