नमस्कार दोस्तों !
मै गव्यसिद्ध सन्नी कुमार आपका स्वागत करता हूँ। आप के अपने चैनल गौ ज्ञान गंगा मे।
दोस्तों आज हम जानेगे की क्या एलोपेथी से ही हम स्वस्थ राह सकते है,एलोपैथी का हमारे जीवन में कितना उपयोग होना चाहिए है। इस वीडियो में हम "एलोपैथी का मूल्यांकन"करेंगे।
एलोपैथी का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ।,जानने के लिए कृपा बिना स्किप करे पूरा वीडियो देखे।
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'ऐलोपैथी का मूल्यांकन'
सारे संसार में प्रचलित ऐलापैथी का मुल्यांकन बहुत जरूरी k_{1} कई बार है कि यह वरदान है, अनेक बार लगता है कि यह अभिशाप है। ऐलापैथी वास्तविकता समझने, उसका मूल्यांकन करने का एक प्रयास करते है क्या एल के द्वारा स्वास्थ्य संभव है? इतिहास गवाह है कि अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति वाशिंगटन चिकित्सा के कारण मर गए थे। 1799 में चिकित्सा के नाम पर उ लगभग 80 औंस (शरीर का 40 प्रतिशत) रक्त निकाल दिया था। गले की स के इलाज के लिये बार-बार रक्त निकालने से उनकी मृत्यु हुई थी।
वे लोग अपने राष्ट्रपति की चिकित्सा भी ठीक से नहीं कर पाए हमारी अनपढ़ दादी, नानी गले की सूजन का इलाज हजारों साल से करती आ रही हैं। आज ऐलोपैथी चिकित्सा बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। स्वयं अमेरिका के डाक्टरों कहना है कि 2,50,000 रोगी ऐलोपैथी चिकित्सा से, हर साल अमेरिका में है। इनमें दवाओं के दुष्प्रभावों से 1, 06, 000 मरते हैं। ऐसा समझा जाता है कि आंकड़े वास्तविकता से काफी कम हैं, क्योंकि अनेक मामले छुपा दबा दिये जाते है।
(डा. बार्बरा स्वरफील्ड, डा. जोसेफ मेरकोला)
अमेरिका में यह हालत है तो अफ्रीका एवं एशियाई देशों में तो करोड़ों लोग इस चिकित्सा से भर रहे होंगे यह भी किसी से छुपा नहीं कि महंगी एलोपैथी चिकित्सा के कारण हर साल लाखों परिवार निर्धनता की श्रेणी में आ जाते हैं। आधुनिक चिकित्सा में नैतिकता की सब सीमाएं टूट रही है। मानव अंगों का व्यापार, बिना कारण अपरेशन करना, अकारण आई.सी.यू. में भर्ती करना, मरे हुए व्यक्ति को आई.सी.यू. में रखकर पैसा कमाने तक के मामले सामने आए हैं। लोगों को डराकर अनावश्यक दवाईयाँ देना रोज की बात है। एलोपैथिक दवाओं की विषाक्तता का सिद्धान्त पीछे बताया जा चुका है।
वैसे भी इस चिकित्सा के कारण तीन लाख करोड़ रुपए (औपचारिक सूचना) से अधि तक हर साल भारत का लूट लिया जाता है। यह राशि हर साल लगातार बढ़ती ही जा रही है। यह भी हो सकता है कि यह राशि छ लाख करोड़ से भी कहीं अधिक हो।
ऐसे में अपनी स्वदेशी निरापद् चिकित्सा पद्धतियों पर ध्यान देना बहुत जरूरी हो चुका है। हमारी चिकित्सा पद्धतियों में दुष्प्रभाव की संभावना नगण्य है। ये चिकित्सा पद्धतियाँ सरलता से सीखी सिखाई जा सकती हैं।
ऐलोपैथी को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, नकारने की आवश्यकता भी नहीं है। मानव के लिए जो हितकारी है, उसे ग्रहण करना चाहिए। फिर चाहे वह स्वदेशी हो या विदेशी हो। वेद मंत्र है:
।। आनो भद्राः क्रतवो अर्थात् यन्तु विश्वतः ।।
जो कल्याणकारी है उसे सब दिशाओं से आने दो।
ऐलेपैथी जांच (टेस्ट), शरीर विज्ञान, शल्य चिकित्सा, विकसित यंत्रों आदि का उपयोग सही है। वास्तव में चिकित्सा जगत में प्रयोग किए जाने वाले यंत्र इत्यादि एलोपैथी नहीं विज्ञान है। समस्या केवल एलोपैथिक जगत की अनैतिकता और निश्चित दुष्प्रभाव करने वाली दवाओं के साथ है। अतः जो श्रेष्ठ है, कल्याणकारी है वह स्वीकार्य है और जो अनुचित है, अकल्याणकारी है, उसे नकारना, त्यागना, बदलना होगा।
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