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नारियल तेल से मधुमेह का इलाज
एक अमेरिकी चिकित्सक ने गहन खोजों से साबित किया है कि नारियल तेल का नियमित सेवन करने से मधुमेह रोगियों की सभी समस्याएं सुलझ सकती है। मधुमेह रोगी दो प्रकार के होते हैं। एक का स्वादु पिंड या पेन्क्रिया खराब होने से कारण इन्सुलन नहीं बना पता और दूसरे प्रकार के रोगियों के कोष इंसुलिन के ग्रहण नहीं कर पाते। मधुमेह के रोगी के कोश इंसुलिन रेजिस्टेंट होने और इंसुलिन को ग्रहण न करने के कारण शरीर ग्लूकोज या शर्करा को ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाता ऊर्जा या आहार के अभाव में रोगी के कोश मरने लगते हैं। यही कारण है कि मधुमेह रोगी को कोई भी अन्य रोग होने पर खतरनाक स्थिति बन जाते है, क्योंकि उसके कोष तो आहार के अभाव में पहले ही मर रहे होते हैं, ऊपर है। नए रोग के कारण मरने वाले कोशों की मरम्मत का काम आ जाता है, जो कि शरीर का दुर्बल तंत्र कर नहीं पाता। ऐसे में नारियल का तेल सुनिश्चित समाधान के रूप में काम करता है।
खोजों के अनुसार यह तेल बिना पित्त के ही पचने लगता है जबकि अन्य तेल आमाशय में पित्त के साथ मिल कर पचना शुरू करते हैं। नारियल तेल बिना पित्त के सीधा लीवर में पहुँच जाता है और वहाँ से रक्त प्रवाह में और स्नायु कोशों में "कैटोन बोडीज' के रूप में पहुँच कर ऊर्जा की पूर्ति करता है। यह 'कैटोन बोडीज' अत्यंत शक्तिशाली ढंग से नवीन कोशों का निर्माण करती है जिसके कारण शर्करा या इंसुलिन आदि दवाओं की जरूरत ही नहीं रह जाती। नारियल तेल से नवीन कोश बनने लगते हैं तथा शरीर की रोग निरोधक शक्ति पूरी तरह से काम करने लगती है, जिसके कारण सभी रोग स्वतः ठीक होने में सहायता मिलती है।
केवल मधुमेह ही नहीं एल्जाईमर, मिर्गी, अधरंग, हार्ट अटैक, चोट आदि के कारण
मर चुके कोश भी पुनः बनने लगते हैं तथा असाध्य समझे जाने वाले रोग भी
ठीक होते हैं। जिस चिकित्सक ने यह शोध किया उनके पिता एल्जिमस डिजीज के रोगी थे। वे केवल नारियल के तेल के प्रयोग से पूरी तरह ठीक हो गये। इसके बाद उन्होंने इसी प्रकार के कई रोगियों का सफल इलाज किया। ध्यान रहे कि नारियल तेल का प्रयोग करते समय मधुमेह रोगी की चल रही दवाएं धीरे-धीरे घटाते जाएं और निरन्तर जाँच करते रहें कि इंसुलिन का स्तर सही है।
प्रयोगः
चिकित्सा लिए एक दिन में लगभग 30-45 मि.ली. नारियल तेल प्रयोग जाना चाहिए जो भारतीयों लिया थोड़ा कठिन वैसे शुरुआत केवल एक चम्मच करते हुए धीरे-धीरे मात्रा बढ़ानी चाहिए अन्यथा पाचन बिगड़ सकता गर्मियों में ध्यान देना होगा अधिक प्रयोग प्रभाव हो। सावधानी से प्रयोग करते-करते मात्रा सीमा जाती है। एक उल्लेखनीय बात कि दक्षिण भारतीय लोग नारियल की चटनी गर्मियों भी दही में पीस बनाते हैं और पर्याप्त मात्रा इसका प्रयोग करते अतः में पीस कर बनी नारियल चटनी का प्रयोग तो गर्मियों मौसम में भी आराम किया जा सकता है। रात को दही के प्रयोग से परहेज करना चाहिए।
पर आजकल के हालत अब बात इतनी सीधी-सरल नहीं गयी नारियल तेल विषाक्त हो सकता है। हजारों साल नारियल वृक्ष किसी प्रकार कोई नहीं था। कम्पनियों नारियल को आहार हटाने के केरल जबरदस्त करवाया हृदय रोग हैं। लोगों नारियल तेल खाना दिया, तेल निकालने की इकाइयाँ गई। अब नारियल ऐसे कीट पैदा कर जो इसके नष्ट देते हैं। मजबूरन तेज विषैली दवाओं का छिड़काव अनेक बार करने लगे हरे नारियल की शैल्फ लाईफ बढ़ाने उसे रसायनों में उपचारित किया इस प्रकार समान नारियल और नारियल विषाक्त बना है। हमने तत्व' नारियल तेल प्रयोग इन्सुलिन के टीके लगवाने वाले मधुमेह रोगियों को पूरी रोगमुक्त करने में सफलता की है। उनका तेल नारियल अभी तक रसायन मुक्त है।
तेल निकालने का ' हेक्जेन ' एक विष
नारियल, सरसों, तिल, बादाम, आजकल इन को निकालने लिए दबाव प्रक्रिया या संपीड़न नहीं किया जाता। एक रसायन का इस्तेमाल व्यापक रूप तिलहन उद्योग में रहा है। यह 'हेक्ज़ेन' नामक रसायन बीजों तेल को अलग कर देता हवा में इसकी थोड़ी उपस्थिति भी स्नायु कोशों को नष्ट करने लगती इसके खाए जाने पर जो आधुनिक जीवनशैली
विषाक्त प्रभाव होते हैं, उन पर तो अभी खोज ही नहीं हुई है पर वैज्ञानिकों क अनुमान है कि सूंघने से दस गुना अधिक इसके खाए जाने के दुष्प्रभाव होंगे। यह रसायन न्यूरो टॉक्सिक है। शरीर के कोशों को हानि पहुंचाता है, अनेक असाध्य और गंभीर रोगों का जनक है। स्मरणीय है कि यह प्रोटीन में से फैट्स को अलग कर देता है। स्पष्ट है कि यह हमारे शरीर के मेद या चर्बी को चूस कर बाहर निकाल देगा जो न जाने कितने भयावह रोगों का कारण बन रहा है। इन तथ्यों को हमसे छुपाकर रखा गया है और इस रसायन का प्रयोग बिना किसी रुकावट बड़े स्तर पर हो रहा है। यह अभी तक अज्ञात है कि इस रसायन के संपर्क में आने के बाद फैट्स की संरचना में कौन से विकार आते हैं। सम्भावना तो यही है कि हैक्ज़ेन के सम्पर्क से तेल की संरचना में घातक विकार निश्चित रूप से आते होंगे।
हैक्ज़ेन के हानिकारक प्रभावों के बारे में लोगों को और सरकारी तंत्र को जागृत करने की जरूरत है, इतना तो हम मानकर चलें कि शासनकर्ता, अधिकारी और नेता विषैले तेल खाकर मरना नहीं चाहते, पर उन्हें वास्तविकता की जानकारी ही। नहीं है। अनजाने में वे अपने साथ-साथ सबके विनाश में सहायक बन रहे हैं। वास्तविकता जानलेने पर वे भी इस विष के व्यापार को रोकने में सहयोगी सिद्ध होगें। कुशलता और धैर्य से प्रयास करने के अलावा और कोई मार्ग नहीं।
बचाव के लिये :
दैनिक जीवन में विषनिवारक वस्तुओं का प्रयोग नियमित रूप से करते रहें जिससे बचाव होता रहे। गिलोय, घीक्चार, पीपल, तुलसी पत्र, बिल्व पत्र, नीम, कढीपत्ता, पुनर्नवा, श्योनाक आदि या जो भी मिलें, उन का प्रयोग भिगो कर या पका कर यथासंभव रोज थोड़ी मात्रा में करें यदि ये सब या इनमें से कोई सामग्री न मिले तो पतंजली के 'सर्व कल्प क्वाय' का दैनिक प्रयोग करें।
!! तुलसी तोड़ने के नियम !!
रविवार, एकादशी, द्वादशी, अमावस्या, पूर्णिमा, दोपहर 12 बजे के बाद तुलसी नहीं तोड़ना। तुलसी तोड़ने का मंत्र
।। ओम् सुप्रभाय नमः । ओम् सुभद्राय नमः ।।
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